60 साल पुरानी इस सरकारी इंश्योरेंस कंपनी का सफर शानदार रहा है. भारत के इंश्योरेंस मार्केट में एलआईसी का 70 फ़ीसदी से ज़्यादा पर कब्ज़ा है.
सरकार जब भी मुश्किल में फंसती है तो एलआईसी किसी भरोसेमंद दोस्त की तरह सामने आई. इसके लिए एलआईसी ने ख़ुद भी नुक़सान झेला है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2.1 लाख करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य रखा है जो कि अब तक का सबसे ज़्यादा है. इनमें से एलआईसी और आईडीबीआई से 90 हज़ार करोड़ रुपए हासिल करने की योजना है. मोदी सरकार ने भारत पेट्रोलियम और एयर इंडिया को पहले से ही बेचने की घोषणा कर रखी है.
साल 1956 में जब भारत में जीवन बीमा से जुड़ी व्यापारिक गतिविधियों के राष्ट्रीयकरण के एलआईसी एक्ट लाया गया था, तब इसका अंदाज़ा कम ही लोगों को रहा होगा कि एक दिन संसद में इसकी बिक्री का प्रस्ताव लाए जाने की नौबत आ जाएगी.
ज़्यादा पुरानी बात नहीं जब साल 2015 में ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) के आईपीओ के वक़्त भारतीय जीवन बीमा निगम ने 1.4 अरब डॉलर की रक़म लगाई थी. चार साल बाद जब ख़राब क़र्ज़ों से जूझ रही आईडीबीआई बैंक को उबारने की बात आई तो एलआईसी ने एक बार फिर अपनी झोली खोल दी.
लेकिन अब हालात बदल गए हैं और सरकार एलआईसी में सौ फीसदी की अपनी हिस्सेदारी को कम करना चाहती है. यानी सरकार अब तक एलआईसी का इस्तेमाल दूसरों को बेचने में करती थी अब उसे ही बेचने जा रही. सरकार हिस्सेदारी बेचने के लिए आईपीओ का रास्ता अपनाने जा रही है.
वैसे अभी इस बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है कि सरकार कितने फ़ीसदी शेयर आईपीओ के ज़रिए बाज़ार के हवाले करेगी.
अगर सरकार एलआईसी में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा की हिस्सेदारी रखती है तो इसका मतलब ये हुआ कि भारतीय जीवन बीमा निगम का प्रबंधन और बड़ी हिस्सेदारी सरकार के पास ही रहेगी.

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