विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट आज सुबह 5 बजे विधि विधान और पूजा अर्चना के बाद खोल दिए गए हैं। कपाट खुलने के मौके पर यहां श्रद्धालुओं व स्थानीय लोगों की कमी साफ देखी गई। कोरोना संकट के चलते यह दूसरा मौका है। जब कपाट खुलने पर बाबा के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ नहीं लगी। केदारनाथ मंदिर को 11 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। हिंदू धर्म में हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ धाम को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। हिंदू पुराणों में साल के करीब 6 महीने बर्फ से ढके इस पवित्र मंदिर को भगवान शिव का वास स्थान कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव हर समय एक त्रिकोण शिवलिंग के रूप में निवास करते हैं। वैसे तो इस धाम से जुड़ी कई कहानियां पौराणिक ग्रंथों में मिलती हैं। लेकिन आज आपको महाभारत में इसी धाम से जुड़ी एक कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं। इस कथा में बताया गया है कि भगवान शिव ने यहां पांडवों को दर्शन दिए थे। जिसके बाद पांडवों ने यहां इस धाम की स्थापना की थी।
पांडवों ने क्यों बनवाया केदारनाथ मंदिर
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में जीत के बाद पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के राजा के रूप में ताज पहनाया गया था। उसके बाद युधिष्ठिर ने लगभग चार दशकों तक हस्तिनापुर पर शासन किया। इस बीच, एक दिन पांचों पांडव भगवान कृष्ण के साथ बैठे थे और महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। समीक्षा में पांडवों ने श्री कृष्ण से कहा, हे नारायण हम सभी को अपने भाइयों बांधव को मारने का कलंक है। इस कलंक को कैसे दूर करें? तब श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा कि यह सत्य है कि भले ही तुमने युद्ध जीत लिया हो, लेकिन तुम अपने गुरु और भाइयों बांधवों को मारने के कारण पाप के भागी हो गए हो। इन पापों के कारण मोक्ष असंभव है। इन पापों से केवल महादेव ही तुमको छुटकारा दे सकते हैं। इसलिए महादेव की शरण में जाओ। उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका लौट गए। पांडवों को पापों से मुक्ति की चिंता सताने लगी और वे मन ही मन सोचते रहे कि वे राजपाठ को छोड़कर भगवान शिव की शरण में कब जाएंगे। इसी बीच एक दिन पांडवों को पता चला कि भगवान वासुदेव ने अपना शरीर त्याग दिया है और वे अपने परमधाम लौट गए हैं। यह सुनकर पांडवों को भी पृथ्वी पर रहना उचित नहीं लगा। युद्ध के मैदान में गुरु, पितामह और सखा सभी पीछे छूट गए। माता, बड़े, पिता और काका विदुर भी वनवास में चले गए थे। हमेशा सहायक रहे भगवान श्री कृष्ण भी परमधाम लौट गए थे। ऐसे में पांडवों ने परीक्षित को राज्य सौंप दिया और द्रौपदी के साथ हस्तिनापुर छोड़कर भगवान शिव की खोज में निकल पड़े। हस्तिनापुर से निकलने के बाद पांचों भाई और द्रौपदी पहले भगवान शिव के दर्शन करने काशी पहुंचे। लेकिन भोलेनाथ वहां नहीं मिले। उसके बाद उन्होंने और भी कई जगहों पर भगवान शिव को खोजने की कोशिश की, लेकिन ये लोग जहां जाते, वहां से भगवान शिव जी चले जाते। इसी क्रम में एक दिन पांचों पांडव और द्रौपदी भगवान शिव की खोज में हिमालय आए।
यहां पर जब भगवान शिव ने इन लोगों को देखा तो वे छिप गए, लेकिन यहां युधिष्ठिर ने भगवान शिव को छिपे हुए देखा था। तब युधिष्ठिर ने भगवान शिव से कहा कि आप कितना भी छिपा लें, भगवान लेकिन हम आपको देखे बिना यहां से नहीं जाएंगे और मुझे यह भी पता है कि आप हमसे क्यों छुप रहे हैं, क्योंकि हमने पाप किया है। युधिष्ठिर के इतना कहने के बाद पांचों पांडव आगे बढ़ने लगे। इसी दौरान एक बैल ने उन पर हमला कर दिया। यह देख भीम उससे लड़ने लगे। इसी बीच बैल ने अपना सिर चट्टानों के बीच छिपा लिया, जिसके बाद भीम ने उसकी पूंछ खींचनी शुरू की और बैल के धड़ को सिर से दूर खींच लिया और बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया और कुछ देर बाद शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए। भगवान शिव ने पांडवों के पापों को क्षमा कर दिया। इस घटना के प्रमाण आज भी केदारनाथ में मिलते हैं। जहां शिवलिंग बैल के कुल्हे के रूप में मौजूद है। भगवान शिव को अपने सामने देखकर पांडवों ने उन्हें प्रणाम किया और उसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को स्वर्ग का मार्ग बताया और फिर गायब हो गए। उसके बाद पांडवों ने उस शिवलिंग की पूजा की और आज उसी शिवलिंग को केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान शिव जी ने स्वयं पांडवों को स्वर्ग का रास्ता दिखाया था। इसलिए हिंदू धर्म में केदारनाथ स्थल को मोक्ष का स्थान भी माना जाता है और ऐसा माना जाता है कि अगर कोई केदार दर्शन का संकल्प लेता है और मर जाता है, तो उस प्राणी को जन्म नहीं लेना पड़ता है। वह मोक्ष पता है।
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