डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 (DPDP Act 2023)
भारत में डाटा सुरक्षा को लेकर एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
सरकार का दावा है कि इस कानून का मकसद
डिजिटल युग में लोगों की व्यक्तिगत जानकारी को सुरक्षित करना है।
लेकिन इसी कानून ने पत्रकारों, RTI कार्यकर्ताओं और
सामाजिक संगठनों के
बीच चिंता की लहर भी पैदा कर दी है।
क्या DPDP कानून RTI एक्ट को कमजोर कर रहा
है?
इस कानून के तहत, RTI एक्ट की धारा 8(1)(j) में बड़ा बदलाव किया गया है। अब किसी भी
व्यक्ति की निजी
जानकारी RTI के
जरिए मांगी नहीं जा सकती, जब
तक कि उसकी साफ़ सहमति न हो। यही नहीं,
DPDP एक्ट की धारा 44(3) के
मुताबिक, जो
भी व्यक्ति बिना सहमति किसी की पर्सनल जानकारी मांगेगा या सार्वजनिक करेगा, उसे "डेटा
फिडिशरी" माना
जाएगा- यानी कि वही संस्था या व्यक्ति जो डाटा
को प्रोसेस करता है।
पत्रकारों और RTI कार्यकर्ताओं के लिए
खतरा क्यों?
RTI एक्ट
की मदद से ही 2G
स्पेक्ट्रम, आदर्श घोटाले जैसे
बड़े घोटाले सामने आए थे।
क्योंकि उस समय RTI
की धारा 8(1)(j) में
यह छूट थी कि यदि जानकारी
जनहित में है,
तो उसे हासिल किया जा सकता है। लेकिन अब इस अपवाद को हटा दिया
गया है।
इसका मतलब है कि अब अगर कोई पत्रकार
किसी अधिकारी की संपत्ति या नियुक्ति से जुड़ी जानकारी मांगेगा, तो वह "निजी
जानकारी" के
तहत आएगी- और मना किया जा सकता है।
कितना जुर्माना लगेगा?
- अगर कोई व्यक्ति बिना सहमति पर्सनल जानकारी पब्लिक करता
है, तो:
- बड़ी कंपनियों पर ₹250 करोड़
तक का जुर्माना
- आम आदमी पर ₹10,000
तक का जुर्माना
लेकिन कानूनी परिभाषा
के अनुसार, जो
भी जानकारी मांग रहा है, वह डेटा
फिडिशरी ही
माना जाएगा। यानी पत्रकारों और RTI एक्टिविस्ट्स
पर भी ₹250 करोड़
तक का जुर्माना लग सकता है।
अपील का क्या है
रास्ता?
कानून या खतरा?
DPDP एक्ट
का उद्देश्य तो डाटा सुरक्षा है, लेकिन
इसके प्रावधानों के चलते:
- RTI एक्ट कमजोर हुआ
है
- जनहित की जानकारी तक पहुंचना मुश्किल हो गया है
- पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जांच की आज़ादी
पर असर पड़ सकता है
इसलिए सवाल यह है-
क्या यह कानून
डाटा सुरक्षा की आड़ में पारदर्शिता पर पर्दा डाल रहा है?
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