भगवान परशुराम, हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। इन्हें "आवेशावतार" कहा जाता है, यानी वह अवतार जिसमें भगवान विष्णु की शक्ति विशेष रूप से समाहित होती है। परशुराम जी का जन्म माता रेणुका और पिता ऋषि जमदग्नि के घर हुआ था। इनकी माता चंद्रवंशी क्षत्रिय थीं और पिता ब्राह्मण कुल से थे, जिससे परशुराम जी के व्यक्तित्व में ब्राह्मणों की बुद्धि और क्षत्रियों की वीरता दोनों दिखाई देती है।
परशुराम जयंती और
जन्म तिथि
परशुराम जी का जन्म वैशाख
शुक्ल द्वितीया को
हुआ था, जिसे परशुराम
जयंती के
रूप में पूरे भारत में श्रद्धा से मनाया जाता है।
भगवान परशुराम से
जुड़ी प्रमुख बातें:
- परशुराम जी
सप्त चिरंजीवी (अमर योद्धा) में
शामिल हैं।
- उन्हें
त्रेता युग में भगवान राम और द्वापर
में श्रीकृष्ण से जुड़ी घटनाओं में सक्रिय रूप से वर्णित किया गया है।
- इन्होंने
द्रोणाचार्य, भीष्म और कर्ण जैसे
महान योद्धाओं को शस्त्र विद्या सिखाई थी।
- महाभारत के अनुसार कर्ण ने ब्राह्मण बनकर इनसे शिक्षा ली, जिस पर परशुराम
जी ने क्रोधित होकर श्राप दिया कि संकट के समय उसकी विद्या निष्फल हो जाएगी।
- भगवान शिव ने इन्हें दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) प्रदान किया, जिससे इनका नाम
पड़ा "परशुराम"।
परशुराम का
क्षत्रियों से संघर्ष
जब सहस्रार्जुन ने इनके पिता की कामधेनु गाय छीन ली। ज्यों ही भगवान परशुराम को अपने पिता के अपमान के बारे में पता चला तो उन्होंने कामधेनु को वापस पाने के लिए सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया। अंतत: युद्ध में परशुराम ने सहस्त्रार्जुन की सभी भुजाएं काट दीं और उसका वध कर दिया। सहस्त्रार्जुन की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने बदला लेने की ठानी और जब परशुराम जी मौजूद नहीं थे तो सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने जमदग्नि जी को अकेले ध्यान में लीन देखकर उनकी हत्या कर दी। जब परशुराम जी की मां देवी रेणुका को अपने पति की हत्या की खबर मिली तो वह व्याकुल हो गईं और ऋषि जमदग्नि के साथ अग्नि में सती हो गईं। परशुराम जी जब लौटकर आये तो अपने माता-पिता के विषय में ज्ञात होते ही अत्यन्त कुपित हो उठे, तो परशुराम जी ने प्रतिशोध स्वरूप संकल्प लिया कि वे पूरे पृथ्वी से अहंकारी क्षत्रियों का नाश करेंगे।
परशुराम जी का योगदान
और तपस्या
- वे आजीवन
ब्रह्मचारी रहे
और नारी-जागृति आंदोलन के भी प्रवर्तक माने जाते हैं।
- भगवान शिव,
भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण से
दिव्य अस्त्र-शस्त्र और मन्त्र प्राप्त किये।
- आज भी मान्यता है कि वे महेन्द्र पर्वत पर
तपस्या में लीन हैं और जब
कल्कि अवतार होगा, तब वे उनके गुरु बनेंगे।
भगवान परशुराम मंत्र
भगवान परशुराम केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि धर्म, ज्ञान, तपस्या और न्याय के
प्रतीक हैं।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना, ज्ञान अर्जित करना और धर्म का पालन करना
कितना महत्वपूर्ण है। आज भी परशुराम जयंती,
द्वादशी और अन्य पर्वों पर लाखों श्रद्धालु उनकी पूजा करते
हैं।
📢 अस्वीकरण (Disclaimer)
इस पोस्ट में दी गई सभी जानकारियाँ धार्मिक ग्रंथों, पुराणों, लोक मान्यताओं और ऐतिहासिक कथाओं पर आधारित हैं। हमारा उद्देश्य केवल जानकारी साझा करना और पाठकों की जिज्ञासा को संतुष्ट करना है। हम किसी भी प्रकार की धार्मिक भावना को आहत करने का इरादा नहीं रखते। कृपया इन जानकारियों को आस्था और श्रद्धा के साथ पढ़ें।
यदि किसी तथ्य में कोई त्रुटि हो, तो वह अनजाने में हुई है और हम सुधार के लिए सदैव तत्पर हैं। किसी भी आध्यात्मिक या धार्मिक निर्णय से पहले स्वयं अध्ययन करें या विशेषज्ञ की सलाह लें।
No comments:
Post a Comment