क्या आप जानते हैं कि नासा चंद्रमा पर
एक स्थायी "न्यूक्लियर पावर प्लांट" बनाने की योजना पर तेज़ी से काम कर
रहा है? जी
हां, हालिया
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2030 तक
चंद्रमा की सतह पर एक परमाणु रिएक्टर स्थापित करने का मिशन तेजी पकड़ चुका है। इसका उद्देश्य
है: चंद्रमा पर मानव बस्तियों की नींव रखना
और निरंतर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करना।
🔍
क्यों है ये खबर चर्चा में?
- नासा का यह कदम
Artemis Accords के तहत लिया जा
रहा है, जिसका
मकसद है चंद्रमा पर इंसानी मौजूदगी को स्थायी बनाना।
- चंद्रमा पर
लंबे समय तक अंधेरा रहने
के कारण सोलर पावर एक विश्वसनीय विकल्प नहीं है।
- इसलिए अब जरूरत है
एक मजबूत, भरोसेमंद और
लंबे समय तक चलने वाले ऊर्जा स्रोत की, और यहीं पर आता
है परमाणु रिएक्टर का रोल।
⚙️ नए परमाणु रिएक्टर की
खास बातें
- यह रिएक्टर लगभग
100 किलोवाट बिजली
उत्पन्न करेगा।
- तुलना करें तो,
एक तटीय पवन टरबाइन लगभग 2 से 3 मेगावाट बिजली
देती है, लेकिन चंद्रमा
के लिहाज से 100 किलोवाट
एक बड़ी
उपलब्धि मानी
जा रही है।
- यह ऊर्जा
मानव आवासों, वैज्ञानिक
उपकरणों, रोवर्स
और मिशनों को लगातार सपोर्ट देगी,
खासकर उन हिस्सों में जहां सूरज की
रोशनी पहुंच ही नहीं पाती,
जैसे चंद्रमा के
छायादार क्रेटर।
🌐
अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचा: क्या कहते
हैं नियम?
- 1967 की बाह्य
अंतरिक्ष संधि (Outer
Space Treaty) के
अनुसार, अंतरिक्ष
में परमाणु ऊर्जा का
शांतिपूर्ण उपयोग किया
जा सकता है।
- यह संधि अंतरराष्ट्रीय सहयोग, पारदर्शिता और
सुरक्षा के नियमों को भी मजबूती से समर्थन देती है।
- इसके अलावा,
Artemis Accords भी इस बात पर
जोर देते हैं कि:
- अंतरिक्ष संसाधनों का जिम्मेदारी से
उपयोग हो।
- सभी गतिविधियां शांतिपूर्ण और
पारदर्शी हों।
- आज की तारीख तक
56 देश इस
समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं,
भारत भी उनमें से एक
है।
नासा की यह योजना न सिर्फ एक तकनीकी
क्रांति है, बल्कि इंसानी इतिहास में एक नया अध्याय
जोड़ने जा रही है। अगर यह मिशन सफल होता है,
तो आने वाले समय में
चंद्रमा पर रहना और काम करना एक वास्तविकता बन सकता है।
No comments:
Post a Comment