एक बार गोमल सेठ अपनी दुकान पर बेठे थे दोपहर का समय था इसलिए कोई ग्राहक भी नहीं था तो वो थोड़ा सुस्ताने लगे
इतने में ही एक संत
भिक्षक भिक्षा लेने के
लिए दुकान पर आ
पहुचे और सेठ जी को
आवाज लगाई कुछ
देने के लिए...
सेठजी ने देखा की इस समय कोन आया है?
जब उठकर देखा तो
एक संत याचना कर
रहा था
सेठ बड़ा ही दयालु था वह तुरंत उठा और दान देने के लिए एक कटोरी चावल बोरी में से निकाला और संत के पास आकर उनको चावल दे दिया
संत ने सेठ जी को
बहुत बहुत आशीर्वाद
और दुवाए दी
तब सेठ जी ने संत से हाथ जोड़कर बड़े ही
विनम्र भाव से कहा की है गुरुजन आपको मेरे प्रणाम........में आपसे
अपने मन में उठी शंका
का समाधान पूछना
चाहता हु
संत याचक ने कहा की जरुर पूछो...
तब सेठ जी ने कहा
की लोग आपस में
लड़ते क्यों है ?
संत ने सेठ जी के इतना पूछते ही शांत स्वभाव और वाणी में कहा की सेठ मै तुम्हारे पास भिक्षालेने के लिए आया हुँ तुम्हारे इस प्रकार के मुर्खता पूर्वक सवाल के जवाब देने नहीं आया हूँ
इतना संत के मुख से
सुनते ही सेठ जी को
क्रोध आ गया और
मन में सोचने लगे
की यह केसा घमंडी
और असभ्य
संत है ?
ये तो बड़ा ही कृतघ्न है एक तरफ मैंने इनको दान दिया और ये मेरे को ही इस प्रकार की बात बोल रहे है
इनकी इतनी हिम्मत
और ये सोच कर
सेठजी को बहुत
ही गुस्सा आ गया
और वो काफी देर
तक उस संत को
खरी खोटी सुनाते
रहे
और जब अपने मनकी पूरी भड़ास निकाल चुके तब कुछ शांत हुए तब संत ने बड़े ही शांत और स्थिर भाव से कहा की..
जैसे ही मैंने कुछ बोला
आपको गुस्सा आ गया
और आप गुस्से से भर
गए और लगे जोर जोर
से बोलने और चिलाने
वास्तव में केवल गुस्सा
ही सभी झगड़े का मूल
होता है
यदि सभी लोग अपने गुस्से पर काबू रख सके तो या सीख जाये तो दुनिया में झगड़े ही कभी न होंगे
No comments:
Post a Comment