"....एक बार भगवान ने भक्त से पूछा:-
"जीवन कितना है ?"
इस पर भक्त ने कहा-
"-आज का सूरज चढ़िया है कल का पता नहीं चढे़गा या नहीं।"
इस पर भगवान भक्त को कहने लगे-
-"जीवन इतना बड़ा तो नहीं है।
भक्त पुनः कहने लगा-
"- हे सच्चे पातशाह परमपिता परमेश्वर ! अब जो घड़ी आई है, पता नहीं अगली घड़ी आयेगी भी या नहीं !"
भगवान कहने लगे-
"- अभी भी बहुत दूर की बात कर रहे हो। जीवन तो इतना भी नहीं है।"
इस पर भक्त ने दोनों हाथ जोड़कर कहा:-
"- हे सच्चे पातशाह परमपिता परमेश्वर ! फिर आप ही बताओ।"
भगवान ने कहा-
"-जीवन एक श्वांस का खेल है। अगर अन्दर आ गया, बाहर ना आये। अगर श्वांस बाहर आ जाये, वापस अन्दर ना जाये। एक श्वांस का खेल है। इसलिए, हर स्वाँस में सिमरन करो।"
"जय श्री राम जी"
"जीवन कितना है ?"
इस पर भक्त ने कहा-
"-आज का सूरज चढ़िया है कल का पता नहीं चढे़गा या नहीं।"
इस पर भगवान भक्त को कहने लगे-
-"जीवन इतना बड़ा तो नहीं है।
भक्त पुनः कहने लगा-
"- हे सच्चे पातशाह परमपिता परमेश्वर ! अब जो घड़ी आई है, पता नहीं अगली घड़ी आयेगी भी या नहीं !"
भगवान कहने लगे-
"- अभी भी बहुत दूर की बात कर रहे हो। जीवन तो इतना भी नहीं है।"
इस पर भक्त ने दोनों हाथ जोड़कर कहा:-
"- हे सच्चे पातशाह परमपिता परमेश्वर ! फिर आप ही बताओ।"
भगवान ने कहा-
"-जीवन एक श्वांस का खेल है। अगर अन्दर आ गया, बाहर ना आये। अगर श्वांस बाहर आ जाये, वापस अन्दर ना जाये। एक श्वांस का खेल है। इसलिए, हर स्वाँस में सिमरन करो।"
"जय श्री राम जी"
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