भारत ने हाल ही में एक ऐतिहासिक पहल
करते हुए अपने
पहले स्वदेशी ध्रुवीय अनुसंधान पोत (Polar
Research Vessel) के
निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है। यह पोत वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका और आर्कटिक
जैसे चरम वातावरण में अनुसंधान करने के लिए एक अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म प्रदान करेगा।
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भारत-नॉर्वे साझेदारी से होगा निर्माण
इस पोत के निर्माण के लिए भारत
की गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE) और नॉर्वे
की Kongsberg Maritime कंपनी के
बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। GRSE
इस पोत का निर्माण कोलकाता में करेगी, जबकि Kongsberg
इसके डिजाइन और तकनीकी सहायता में सहयोग देगी।
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क्या है ध्रुवीय अनुसंधान पोत?
- यह एक
उन्नत तकनीक से लैस अनुसंधान पोत होगा, जो आर्कटिक और
अंटार्कटिका जैसे दुर्गम क्षेत्रों में काम करेगा।
- इसका उपयोग समुद्री जीवन,
जलवायु परिवर्तन, महासागरीय
धाराओं और पारिस्थितिकी तंत्र के अध्ययन के लिए किया जाएगा।
- गहरे समुद्र में वैज्ञानिक उपकरणों के संचालन, डेटा संग्रहण और
पर्यावरणीय विश्लेषण के लिए यह पोत एक
चलती प्रयोगशाला की
तरह होगा।
⚙️ GRSE: भारत का अग्रणी
शिपबिल्डर
- GRSE की स्थापना 1884 में हुई थी और 1960 में इसे भारत
सरकार ने अधिग्रहित कर लिया।
- इसे 2006 में
मिनी रत्न का
दर्जा मिला।
- यह भारत का पहला शिपयार्ड है जिसने 100 से अधिक युद्धपोत बनाए हैं।
- GRSE न केवल नौसेना
के लिए जहाज बनाता है, बल्कि
वैज्ञानिक और व्यावसायिक जरूरतों के अनुसार भी पोतों का निर्माण करता है।
भारत का पहला ध्रुवीय अनुसंधान पोत न
केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिए वरदान साबित होगा,
बल्कि यह देश की तकनीकी और रणनीतिक क्षमताओं को भी एक नई ऊंचाई
पर ले जाएगा। जलवायु संकट और समुद्री पारिस्थितिकी के अध्ययन में यह पोत अहम
भूमिका निभाएगा।
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