भारत में जब भी जमीन खरीदने या बेचने
की बात होती है, तो सबसे पहले
सवाल आता है: "कितने गज में है?" खासकर उत्तर भारत में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में, जमीन की माप गज में करना एक आम बात है। लेकिन क्या आपने कभी
सोचा है कि आखिर जमीन को गज में ही क्यों मापा जाता है? चलिए, जानते हैं इसके पीछे की इतिहास से जुड़ी कहानी, जो न सिर्फ रोचक है बल्कि हमारी ज़मीनी समझ को
भी गहरा बनाती है।
गांवों से लेकर कस्बों तक - गज का चलन हर जगह है
आज भी भारत के ग्रामीण, अर्ध-शहरी और छोटे शहरों में लोग जमीन की माप
के लिए 'गज' का इस्तेमाल करते हैं।
चाहे ज़मीन के पुराने दस्तावेज़ हों या
लोकल बातचीत गज एक पहचानी हुई इकाई है।
गज की शुरुआत कहां से हुई? ⏳
·
दिल्ली
सल्तनत काल में सिकंदर लोधी (1489-1517) ने "गज-ए-सिकंदरी" नाम से एक माप प्रणाली शुरू की। यह 39
अंगुल (उंगलियों की चौड़ाई)
के बराबर होता था।
·
फिर आया मुगल काल,
जिसमें शेरशाह सूरी ने जमीन के राजस्व
के लिए 'जरीब' नाम की लोहे की चेन से माप शुरू किया। उस वक्त 1 बीघा = 360 वर्ग गज तय किया गया।
·
बाद में अकबर के वित्त
मंत्री टोडरमल ने 'इलाही
गज' नाम से नया स्टैंडर्ड पेश
किया जो 41 अंगुल का था। उनकी जरीब की लंबाई होती थी 60 इलाही गज = 66
फीट या 22 यार्ड।
गज और स्क्वायर यार्ड में क्या फर्क है? 🤔
ब्रिटिश शासन के दौरान "स्क्वायर यार्ड" शब्द आया, जो लगभग गज के बराबर ही होता है।
· ✅ 1 गज = 1 स्क्वायर यार्ड
· ✅ 1 गज = 9 स्क्वायर फीट
तो अगर आप ज़मीन का एरिया समझना चाहें, तो ये आसान गणना है।
गज सिर्फ एक माप नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है। आज भले ही डिजिटल टूल्स आ गए हों,
लेकिन गज में जमीन नापना आज भी ज़मीनी हकीकत से
जुड़ी बात है।
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