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छोटे लोन में बढ़ते डिफॉल्ट से बैंकों की चिंता बढ़ी: छोटे कर्जदारों पर बढ़ा दबाव, बड़े लोन ज्यादा सुरक्षित

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भारत का रिटेल लोन बाजार अब साफ तौर पर दो हिस्सों में बंटा नजर आ रहा है- छोटे और बड़े टिकट वाले लोन। CRIF हाई मार्क की हालिया रिपोर्ट हाउ इंडिया लेंड्स FY25’ के अनुसार, छोटे लोन में डिफॉल्ट यानी लोन चुकाने में चूक की दर तेजी से बढ़ रही है, जबकि बड़े लोन की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर बनी हुई है।

 

🏠 होम लोन: छोटे लोन में बढ़ी चिंता

5 लाख रुपये से कम के होम लोन में डिफॉल्ट की समस्या लगातार बढ़ रही है। मार्च 2025 तक इस कैटेगरी में मिड-स्टेज डिफॉल्ट (31 से 90 दिन तक बकाया) बढ़कर 4.94% हो गया है, जो मार्च 2023 में 3.72% था। वहीं, लेट-स्टेज डिफॉल्ट (91 से 180 दिन) भी 1.62% से बढ़कर 1.95% पहुंच गया।

इसके उलट, 75 लाख रुपये से अधिक के बड़े होम लोन में हालात सुधरे हैं। यहां मिड-स्टेज डिफॉल्ट 1.11% और लेट-स्टेज डिफॉल्ट सिर्फ 0.18% रह गया है।

 

👤 पर्सनल लोन: छोटे कर्जदारों पर ज्यादा भार

1 लाख रुपये से कम के पर्सनल लोन में सबसे ज्यादा डिफॉल्ट देखा गया। मार्च 2025 में इसमें लेट-स्टेज डिफॉल्ट बढ़कर 2.06% हो गया है, जो मार्च 2024 में 1.50% था। हालांकि 1 लाख से ऊपर के लोन में भी चूक की दर बढ़ी है, लेकिन छोटे लोन की स्थिति कहीं ज्यादा खराब है।

 

🛵 टू-व्हीलर लोन: बड़ी रकम, बड़ा खतरा

टू-व्हीलर लोन में तस्वीर थोड़ी अलग है। जहां ₹75,000 से ज्यादा के लोन में मिड-स्टेज डिफॉल्ट मार्च 2024 के 3.74% से बढ़कर मार्च 2025 में 3.86% हो गया, वहीं ₹50,000 से कम के लोन में स्थिति सुधरी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, महंगी होती बाइकों के चलते बड़े लोन में जोखिम बढ़ा है।

 

🚗 ऑटो लोन: संतुलन बरकरार

ऑटो लोन के मामले में स्थिरता बनी हुई है। बड़े यानी ₹10 लाख से ऊपर के लोन की मांग बढ़ी है, जबकि छोटे लोन (₹5 लाख से कम) की हिस्सेदारी FY22 के 43.7% से घटकर FY25 में 30.5% रह गई है।

 

📺 कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन और 💳 क्रेडिट कार्ड पर भी असर

₹10,000 से ₹50,000 तक के कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन (जैसे टीवी, फ्रिज, आदि पर लोन) में भी डिफॉल्ट थोड़ा बढ़ा है, खासकर NBFCs के जरिए दिए गए लोन में।

क्रेडिट कार्ड पर डेटा टिकट साइज के हिसाब से नहीं दिया गया, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि 90 दिन से ज्यादा ओवरड्यू बैलेंस का हिस्सा 15% तक पहुंच गया है। यह इस बात का संकेत है कि ग्राहक भुगतान समय पर नहीं कर पा रहे और रिकवरी की संभावना भी कम होती जा रही है।

रिपोर्ट साफ बताती है कि जहां बड़े लोन अपेक्षाकृत सुरक्षित दिख रहे हैं, वहीं छोटे लोन सेगमेंट में लगातार बढ़ रहा डिफॉल्ट बैंकों और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFCs) के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। यह ट्रेंड न केवल क्रेडिट सिस्टम पर असर डाल सकता है, बल्कि कर्जदारों की वित्तीय सेहत पर भी सवाल खड़े करता है।

 

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