जालंधर, 6 अगस्त: पंजाब के रहने वाले सरबजीत सिंह
रूस-यूक्रेन युद्ध से ज़िंदा लौट आए,
लेकिन उनके ज़हन में वहां की डरावनी यादें आज भी ताजा हैं।
अप्रैल 2024 में
नौकरी की उम्मीद में रूस गए सरबजीत को क्या पता था कि वहां उनकी जिंदगी की सबसे
बड़ी लड़ाई शुरू होने वाली है।
सरबजीत ने बताया कि उन्हें और उनके
साथियों को केवल 15 दिनों
की सैन्य ट्रेनिंग के बाद सीधे यूक्रेन बॉर्डर पर भेज दिया गया। असली बंदूकों और
गोला-बारूद के साथ उन्हें लड़ाई में झोंक दिया गया,
जबकि उनका इस जंग से कोई लेना-देना नहीं था।
“अगर
संत सीचेवाल मदद न करते, तो
शायद मैं कभी लौट ही नहीं पाता”
सरबजीत ने राज्यसभा सांसद संत बलबीर
सिंह सीचेवाल का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि उनकी पहल और कोशिशों के बिना वह
वापस अपने घर नहीं लौट पाते। सरबजीत के माता-पिता मानते हैं कि उनका बेटा मौत के
मुंह से दूसरी बार जन्म लेकर लौटा है।
अब सरबजीत फिर से रूस जा रहे हैं, लेकिन इस बार मिशन अलग है। वे रूस में
लापता हुए 14 भारतीय
युवकों की तलाश में मास्को रवाना होंगे,
जिनके बारे में अब तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिली है। सरबजीत
रूस के कई शहरों में 8 महीने
से ज्यादा समय बिता चुके हैं और उन्हें स्थानीय सैन्य शिविरों की जानकारी भी है।
कैसे बना ‘कोरियर’ से ‘फौजी’?
सरबजीत ने बताया कि वह और 17 अन्य युवक मास्को कोरियर का काम करने के
इरादे से गए थे। लेकिन एयरपोर्ट पर उतरते ही उन्हें पकड़ लिया गया और एक इमारत में
बंद कर दिया गया। वहां उनके दस्तावेज बनाए गए,
मेडिकल जांच हुई और फिर ट्रेनिंग के नाम पर सीधे युद्धक्षेत्र
में भेज दिया गया।
जंग का मंजर: लाशें, भूख और मौत का डर
उन्होंने बताया कि वहां कभी ट्रकों में
ले जाया जाता था, तो
कभी घंटों पैदल चलना पड़ता था। 5-5 लोगों
की टीम बनाकर उन्हें वर्दी और हथियार थमा दिए जाते। यूक्रेन के इलाकों में
जहां-जहां वे गए, वहां
चारों ओर सिर्फ लाशें दिखती थीं – इनमें
कई भारतीयों की भी पहचान की गई।
सरबजीत के अनुसार, कई दिनों तक उन्हें पीने का पानी तक
नसीब नहीं होता था, खाना
भी वक्त पर नहीं मिलता था। एक बार तो हालात इतने खराब हो गए कि उन्होंने आत्महत्या
करने की कोशिश भी की। "मुझे लगा कि अब मौत तय है," सरबजीत ने कंपकंपाती
आवाज में कहा।
सरकार से अपील: लापता
भारतीयों की सुरक्षित वापसी हो
सांसद संत सीचेवाल ने बताया कि संसद के
मानसून सत्र के दौरान उन्होंने सरकार से रूस में फंसे भारतीयों की मदद की अपील की
है। केंद्र सरकार को दिए गए प्रश्न में बताया गया कि रूस की आर्मी में शामिल 13 भारतीयों में से अब भी 12 लापता हैं। सरकार उनकी तलाश में जुटी
है।
सीचेवाल ने यह भी बताया कि उन्होंने
फरवरी 2025 में
दो लोगों को टिकट उपलब्ध करवाकर रूस भेजा था,
ताकि वे अपने परिजनों की खोज कर सकें। इसके अलावा मास्को स्थित
भारतीय दूतावास को भी कई बार पत्र लिखे गए हैं।
नोट: यह कहानी न केवल युद्ध की भयावहता को
उजागर करती है, बल्कि
यह भी बताती है कि किस तरह युवाओं को धोखे से युद्ध में झोंक दिया जा रहा है।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे मामलों पर गंभीरता से कार्रवाई हो।
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